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जौनपुर। एनजीटी कानून के तहत डंठल जलाना अब किसानों को मंहगा पड़ेगा- डीएम जौनपुर

जौनपुर (28अप्रैल)। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने खेतों से लाभदायक जीवाणुओं को बचाने और पर्यावरण संरक्षण के तहत
जिलाधिकारी अरविंद मलप्पा बंगारी ने बताया कि खेतों में पराली यानी गेहूं का डंठल जलाना अब महंगा साबित होगा। ऐसा करने वालों पर जहां जुर्माना लगाई जाएंगी वहीं दोबारा पकड़े जाने पर कृषि विभाग के अनुदान से वंचित कर दिया जाएगा।
वर्तमान में रबी फसलों की कटाई के बाद, जो डंठल बचता है किसान उसे खेत में ही जला देते हैं। फलस्वरूप भूमि की ऊपरी सतह जल जाती है उससे लाभदायक जीवाणु समाप्त होने के साथ ही पर्यावरण भी दूषित होता है फसल अवशेष जलाने से तमाम बस्तियों, खेतो, जंगलों आदि स्थानों पर अगलगी की तमाम दुर्घटनाएं होती रहती हैं। इस गंभीर समस्या को देखते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने खेतों में फसल अवशेष जलाने वालों पर दंडात्मक कानून बना दिया है। फसल अवशेष जलाने पर जहां ढाई हजार से लेकर पंद्रह हजार रुपए तक जुर्माने की राशि तय की गई है, वही दोबारा खेत में फसल अवशेष जलाते हुए पकड़े जाने पर ऐसे कृषकों को कृषि विभाग से मिलने वाले अनुदानों से भी वंचित कर दिया जाएगा। जिलाधिकारी ने किसानों को सुझाव दिया है कि गेहूं की कटाई स्ट्रारीपर हार्वेस्टर से ही कराएं। यह तंत्र डंठल का भूसा बना देगी इससे पशुओं के लिए चारा भी मिल जाएगा। वहीं दूसरी सबसे बड़ी समस्या खेत में आग लगने से भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है और मिट्टी के अंदर स्थित मित्र कीटों की मृत्यु हो जाती है। इससे मृदा का संतुलन भी बिगड़ जाता है। डंठल नहीं जलाने से इससे निजात मिलेगी। जिलाधिकारी द्वारा बताया गया कि बगैर स्ट्रारीपर के हार्वेस्टर मशीन से कटाई पर भी रोक लगाई गई है। जो भी हार्वेस्टर मशीन धारक बिना स्ट्रारीपर के कटाई कराते हुए पाए गए तो उनकी मशीन जब्त कर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। उन्होने बताया गया कि खेतों में डंठल जलाने से किसानों एवं पर्यावरण दोनों को क्षति होती है। मिट्टी में स्थित पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं वहीं मिट्टी के अंदर पल रहे केंचुआ व अन्य मित्र कीटों की भी असमय मौत हो जाती है। केंचुआ मिट्टी को भुरभुरा बना कर मृदा को उर्वरा बनाने का कार्य करता है। मृदा जीवन का आधार है इसे बचाएं।

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