चैत मास में चैता, चहका और चौताल
जौनपुर(24मार्च) बख्शा विकास खण्ड के चुरावनपुर गांव में शनिवार की शाम लोक संगीत समारोह का आयोजन किया गया। सुरुचिपूर्ण लोक संगीत को जीवंत रखने के उद्देश्य से श्री द्वारिकाधीश लोक संस्कृति संस्थान द्वारा शनिवार की देर रात तक चले इस फागुनी धमाल में श्रोता आनन्दित होते रहे।श्री द्वारिकाधीश लोक संस्कृति संस्थान पिछले पांच दशकों से अनवरत जनपद के लोक कलाकारों को मंच प्रदान करता आ रहा है। यह संस्थान विलुप्त हो रहे जनपद की फाग गीतों फगुआ, चौताल, चहका, धमार, उलारा, बेलवइया एवं चैता आदि अवधी लोक गीतों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु सक्रिय है। फागुनी गीतों के विविध गायन में पण्डित श्रीपति उपाध्याय, लोक गायक प्रज्ञा चक्षु बजरंगी सिंह, सत्यनाथ पांडेय, झीनू दूबे, रामआसरे तिवारी, गुलाम अली, भुट्टे अली, कैलाश शुक्ल, नजरू उस्ताद, लक्ष्मी उपाध्याय, कृष्णानन्द उपाध्याय सहित साथियों ने “विंध्याचल साँकर खोरी रे भगवती, “घरवन में गौरैया चहचहानी हो रामा पिया नही आये” , “सखियां सहेलियां भइली लरिकैया पिया नही आये” झुप झुपवन बहे बयार अटरिया लम्बी छवाय द हे बालमा, रात सेजिया पे मोर झुलनी हेरानी बलमुआ, ना देबे कजरवा तोहके तू मरबे केहू के जान रे, गुजराती कहाँ पाऊं यार सेजिया महक रही गुजराती और झुलनी करि कोर कटार जुलुम करि डारे जैसे फागुनी गीतों को सुना कर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। इस अवसर पर स्वागत करते हुए संस्थान के अध्यक्ष डॉ. मनोज मिश्र ने कहा कि आज होली के नाम पर परम्परागत लोक गीतों के स्थान पर अश्लील गीतों का प्रदर्शन हो रहा है। संस्थान का प्रयास होगा कि यह परंपरा विलुप्त न होने पाए। गायकों को रविशंकर मिश्र एवं डॉ सुभाष चंद्र शुक्ल द्वारा अंगवस्त्रम प्रदान कर सम्मानित किया गया। समारोह का संचालन पंडित श्रीपति उपाध्याय एवं धन्यवाद ज्ञापन ओंकार मिश्र ने किया। आयोजन श्री द्वारिकाधीश लोक संस्कृति एवं वानस्पतिकी विकास संस्थान द्वारा किया गया।
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