जौनपुर। बरसठी क्षेत्र के खोइरी (खरगापुर) में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन अंतरराष्ट्रीय कथा व्यास पंडित बालकृष्ण दास जी महाराज ने श्रीकृष्ण रुक्मिणी विवाह प्रसंग पर चर्चा करते हुए कहा कि विदर्भ देश का राजा भीष्मक अपनी पुत्री रुक्मिणी का विवाह श्रीकृष्ण से बैर वश शिशुपाल से करना चाहता था। शादी की तिथि भी निर्धारित हो गई। जब इस बात की खबर रुक्मिणी को लगी तो बहुत दुखी हुईं। चूंकि रुक्मिणी काफी दिनों से भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को सुनकर उनसे अंदर ही अंदर प्रेम करने लगी थीं।
उन्होंने मन में ही ठान लिया था कि मैं विवाह श्रीकृष्ण से ही करूंगी। दरबार के एक विद्वान पंडित को बुलाया और उनको एक पत्र दिया कि जल्दी जाकर श्रीकृष्ण को यह पत्र पहुंचा दो।
पत्र में रुक्मिणी ने भगवान से विनती करते हुए लिखा था कि हे प्रभु मैंने जन्म से ही आपको पति के रूप में वरण कर लिया है। मेरे पिता के न चाहने पर भी मेरे भाई ने मेरी शादी शिशुपाल से करने का निर्णय ले लिया है। एक दिन पहले घर से थोड़ी दूरी पर स्थित गिरजा देवी के मंदिर में विधि-विधान से पूजा करने का प्रावधान है। उसी समय आप आकर मेरा हरण कर लें और मेरे साथ वैवाहिक संबंध स्थापित करें। अगर आपने ऐसा नहीं किया तो मैं अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूंगी।
श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी की दुविधा समझते हुए उनका हरण किया।कथा के दौरान मुख्य यजमान रामप्यारे शुक्ल(बचऊ), हरेंद्र शुक्ल,अशोक शुक्ल,नरेन्द्र शुक्ल, धर्मेंद्र शुक्ल,सचिन,आलोक,रागिनी, स्वाती आदि लोग मौजूद रहीं।