जौनपुर। स्थानीय निकाय चुनाव की तैयारी में जुटे प्रशासन की आंख में एक बार फिर धूल झोंक कर वोटर लिस्ट से नाम कटवाने वाला गैंग सक्रिय हो गया है। इस बात का खुलासा मंगलवार को वार्ड नंबर 26 चकप्यारअली की वोटर लिस्ट से हुआ जब बिना बीएलओ के हस्ताक्षर किये हुए चार पेज में स्थानीय 80 मतदाताओं की मृत्यु दिखाकर उनका नाम वोटर लिस्ट से हटाने को सुपरवाईजर को दिया गया। जब इसकी जांच कराई गई तो मात्र आठ लोगों की ही मृत्यु होने की बात सामने आई। सुपरवाईजर मनोज कुमार ने बताया कि मेरे द्वारा बलुआघाट मुहल्ले में जाकर लिस्ट का सत्यापन किया गया तो ये बात सामने आई। गौरतलब है कि स्थानीय निकाय चुनाव में नगर के 39 वार्डों में अधिकांश लोग अपने सभासद का चुनाव जीतने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाते हैं जिसमें मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन के पहले नाम कटवाने वाला गैंग सक्रिय हो जाता है। 2017 के चुनाव में चकप्यारअली वार्ड से करीब सोलह सौ मतदाताओं का नाम बिना किसी कारण से काट दिया गया था जिसके बाद पूर्व सभासद शाहिद मेंहदी ने जनसूचना के तहत सूचना मांगी तो अधिकारी जवाब नहीं दे सके आखिरकार राज्यसूचना आयुक्त ने तहसीलदार पर पच्चीस हजार जुर्माना लगाकर सजा सुनाई बावजूद इसके 2022 में एक बार पुन: इस तरह के हथकंडे एक बार फिर उजागर हो गया है। सवाल उठता है कि आखिर वे लोग कौन हैं जो बिना बीएलओ की जांच के बाद बगैर हस्ताक्षर के वोटर लिस्ट से नाम कटवाने में जुट जाते हैं। जिस तरह से बलुआघाट के अस्सी मतदाताओं को मृतक दिखाकर नाम काटने की सूची जिला प्रशासन के माध्यम से सुपरवाईजर मनोज कुमार के पास पहुंची वोह सवालिया निशान खड़ी करती है। उदाहरण के तौर पर चकप्यारअली वार्ड के भाग संख्या 191 में मतदाता सूची निर्वाचक क्रम में 208 व 209 अफसर व अहमद अली पुत्र रज्जब अली नाम दर्ज है और वे जीवित हैं लेकिन इनको मृतक दिखाकर वोटर लिस्ट से नाम हटाने के कार्य में ये गैंग जुटा है। अगर देखा जाये तो जिलाधिकारी कार्यालय से मृतकों की जांच के लिए आई सूची में 80 नाम आये थे और सुपरवाइजर की जांच में अब तक 72 लोग जीवित पाये गये हैं। जिसमें मोहम्मद अशरफ पुत्र अब्दुल हमीद, कैफ, वैश,महजबीं पत्नी वैश व इसरार सिद्दीकी पुत्र व पुत्री सिराजुद्दीन, शम्मी, कासिम, बेबीनाज, फरजाना, इजहार समेत 72 लोग अभी तक की जांच में जीवित पाये जा चुके हैं। यह तो बानगी है न जाने ऐसे कितने लोगों को चुनाव के पूर्व मताधिकार के प्रयोग से वंचित किये जाने की इस गैंग ने न सिर्फ योजना बना रखी है बल्कि अपनी योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए शासन प्रशासन की आंख में सीधे धूल झोंकने का काम करते हुए हर हथकंडे अपनाते नजर आ रहे हैं। सवाल यह उठता है कि अगर प्रशासन ने समय रहते इस गैंग का भंडाफोड़ नहीं किया तो चुनाव के समय मताधिकार से वंचित होने वाले लोगों की जिम्मेदारी कौन लेगा। ऐसे हालात चुनाव के दिन सामने आ जाते हैं जब लोग अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते क्योंकि उनका नाम सूची से गायब रहता है और बूथों पर वे हंगामा खड़़ा करते हैं तो प्रशासन भी देर होने और सूची में नाम न होने का हवाला देकर हाथ खड़ा कर लेता है। जिसका लाभ सीधे सीधे वोट कटवा गैंग के प्रत्याशियों को मिल जाता है।