जौनपुर(12जन.)। जिस प्रकार संतोष से मन व आत्मा की शुद्धि आत्मविधा से होती हैं ठीक उसी प्रकार द्रव्य की शुद्धि दान से होती हैं। दान न करने वाला मनुष्य दरिद्र होता हैं। यह बातें क्षेत्र के मचहटी गांव में विजय नारायन सिंह के यहां आयोजित सप्तम श्रीमद्भागवत कथा को श्रवण कराते हुए डॉ०उमाशंकर त्रिपाठी व्यासेंदु ने कही।
श्री शुकदेव जी को उद्धत करते हुए कहा कि जिस द्रव्य का दान नहीं किया जाता वह द्रव्य विष्ठा समान होता है। जो दान नहीं करता वह पापी पुरूष नरक यातनाएं भोग कर जन्म जन्मांतर दरिद्र होता हैं। कृपण व दाताओं को दो श्रेणियों में विभक्त किया गया है।दान न करने वाला दरिद्र होता है।दरिद्र होने से वह पाप करता है। पाप कर्म के द्वारा वह नरक में जाता है। इस प्रकार वह बार बार दरिद्र व पापी होता रहता है।सत्पात्र को दान करने वाला मनुष्य इस लोक में धनी होता है।धनी होने से वह पूण्य करता है।पूण्य के प्रभाव से वह स्वर्ग में जाता है।वही राजा परीक्षित ने कहा कि हे ब्राह्मण भगवान ने विविध अवतार धारण कर मनुष्य के कर्ण प्रिय जो नाना प्रकार के चरित्र किए है जिनके श्रवण से तृष्णा की निवृत्ति, अन्तःकरण की शुद्धि तथा भगवान की भक्ति प्राप्त होती है।इस अवसर पर कपिल सिंह, अवध नरायन सिंह, अमरजीत सिंह, राम प्रकाश सिंह, विजय प्रताप सिंह, अशोक सिंह मयंक सिंह, एच एन सिंह सहित अन्य श्रद्धालु उपस्थित रहे।