जौनपुर। आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत के बाद डूबते सूरज को पहला अर्घ्य देने के लिए तालाबों में खड़ी रही गुरुवार को नहाने खाने के साथ ही छठ पूजा की शुरुआत हुई। व्रती महिलाओं ने पूजा-अर्चना करने के साथ-साथ भगवान को भोग भी लगाया। इसके साथ ही 36 घंटे के इस महापर्व की विधिवत रूप से पूजा की शुरुआत हुई।
छठ पूजा के पीछे क्या है मान्यता
एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहा जाता हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।
36 घंटों का महापर्व हुआ शुरू
36 घण्टे का यह महापर्व 21 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ पूजा सम्पन्न होगी। बता दें कि महापर्व के दूसरे दिन व्रती महिलाएं दिन भर बिना पानी ग्रहण किए बिना उपवास रखती हैं। इसके बाद सूर्यास्त होने पर पूजा करती हैं। दूध और गुड़ से बनी खीर का भोग लगाने के बाद वे वही खाती हैं और चांद के नज़र आने तक ही पानी पीती हैं। इसके बाद से उनका करीब 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
तीसरे-चौथे दिन दिया जाता है भगवान भास्कर को अर्घ्य
आस्था के महापर्व छठ के तीसरे दिन व्रती महिलाएं डूबते हुए सूर्य को नदी और तालाब में खड़े होकर पहला अर्घ्य देती हैं। व्रती महिलाएं डूबते हुए सूर्य को फल और कंदमूल से अर्घ्य देती हैं। महापर्व के चौथे और अंतिम दिन फिर से नदियों और तालाबों में जाकर व्रती महिलाएं सूर्य को अर्घ्य देती हैं। भगवान भास्कर को दूसरा अर्घ्य अर्पित करने के बाद ही व्रती महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला व्रत समाप्त होता है।
जानिए छठ पूजा का शुभ मुहूर्त
शुक्रवार 20 नवंबर को सूर्योदय: 06:48 बजे और सूर्यास्त: 05:26 बजे होगा। ऐसे में व्रती महिलाएं सूर्यास्त होने से पहले भगवान सूर्य को अर्घ्य दे सकती हैं। वहीं, शनिवार 21 नवंबर को सूर्योदय सुबह 6:45 बजे होगा। व्रती महिलाएं भगवान भास्कर को दूसरा अर्घ्य इससे पहले दे सकती हैं।