जौनपुर(24 मई)। कभी पूरे पूर्वांचल में अपनी खुशबू बिखेरने वाले जमैथा के खरबूजे का भी एक स्वर्णिम काल रहा था, जब इस खरबूजे की फसल के दम पर ही किसान अपनी बेटियों के हाथ पीले करने का दम भरते थे। कोई भी मांगलिक कार्यक्रम करना हो अथवा जमीन जायदाद खरीदना हो किसानों का सबसे बड़ा सहारा खरबूजा ही बनता था। आज खरबूजे की बदहाल स्थिति पर वहां के किसान बहुत दुखी हैं खरबूज की खेती करने वाले जमैथा निवासी किसान श्रीपत निषाद, राजबहादुर यादव, नरेंद्र सिंह तथा मोहम्मद रशीद ने बताया कि कभी यह खरबूजे की खेती बहुत फायदे का सौदा होती थी और इसको बोने तथा मंडियों तक पहुंचाने के लिए हम लोग उत्साहित रहते थे, किंतु समय की मार ऐसी पड़ी कि खरबूजे का तो जैसे अकाल पड़ गया है। न उत्तम किस्म के उन्नत बीज मिलते हैं और न ही सिंचाई सहित अन्य साधन उपलब्ध हो रहे हैं। इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए किसी प्रकार का सरकारी अनुदान भी उपलब्ध नहीं है जिसकी वजह से इसकी खेती के प्रति किसानों की रुचि धीरे धीरे कम होती गई। जिसका आलम यह हो गया कि कभी खरबूजे की महक से पूरा गांव महकता था और सभी दुकानों पर जमैथा के खरबूजे की अच्छी खासी खपत होती थी, वहीं अब यह यदा-कदा ही किसी दुकान अथवा ठेले पर दिखाई देता है वास्तव में यमदग्नि ऋषि की धरती का यह विशेष फल अब अपना स्थान खो चुका है जो जनपद के लिए शुभ संकेत नहीं है।