जौनपुर। सुइथाकला क्षेत्र में कोई भी हो बहुधा हमारे यहां शासन से लेकर प्रशासन तक हादसे के बाद ही मामले में जागने का कार्य करता है, आखिर क्यों? हादसा होने के बाद एलर्ट जारी कर जिम्मेदारानों को सक्रिय होते देखा जाता है। जबकि समय रहते इस तरह की परिस्थितियों के प्रति यदि कोई ठोस कदम उठा लिया जाय तो हादसों के आंकड़ों के ग्राफ में कमी लायी जा सकती है या रोका जा सकता है। मामला इन दिनों क्षेत्र के सड़क मार्ग की पटरियों का है जिन पर बारिश के मौसम के साथ ही तमाम प्रकार के झाड़ झंखाड़ों की मानो बाढ़ सी आ जाती है। जिसके कारण पटरियों पर पैदल और सायकल से चलने वालों के लिए राह चलना मुस्किल हो जाता है। वे पटरियों के अभाव में सड़क पर आकर हादसों के शिकार हो जाते हैं। कभी-कभी तो परिवार ही उजड़ जाता है।
कुछ ऐसी ही परिस्थितियां जिम्मेदारानों की कुम्भकर्णी अवस्था के चलते क्षेत्र में लखनऊ बलिया राजमार्ग समेत तमाम मार्गों की हो गयी है। जगह-जगह पटरियों पर तमाम तरह के झाड़ झंखाड़ों की बाढ़ सी आ गई है। जिसके चलते उक्त राहगीरों का राह चलना मुस्किल सा हो गया है। बारिश के दिनों में पैदल और दो पहिया वाहन सवारों के लिए झाड़ झंखाड़ो के चलते पटरियां सफेद हाथी साबित हो रही है| राह चलने की मजबूरी में सड़क पर आते ही कभी-कभी राहगीर सड़क हादसे के शिकार हो जाते हैं।बारिश का मौसम आते ही यदि जिम्मेदारान इस तरफ ध्यान देकर झाड़ झंखाड़ो की कटाई छटाई करवा देते तो शायद ऐसे राहगीरों को उक्त समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता।लोगों का मानना है कि यदि जिम्मेदारान समय से पहले सतर्क रहते तो हादसे के आकड़ों के ग्राफ में कमी आ सकती है।